By admin
/ समाचार / 30 January, 2023 31 January, 2023
आदरणीय सज्जनों,
यदि आप अपने परिजनों में से किसी को गुरुकुल पद्दत्ति से शास्त्रोक्त विधी से पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान, हवन शांति, रुद्राभिषेक, श्रीमद्भागवत, रामायण कथा वक्ता, हस्त रेखा सहित संगीत शिक्षा ग्रहण कराना चाहते हैं तो आप हमसे अवश्य संपर्क करें, मात्र 3 से 4 सप्ताह की अवधि का प्रशिक्षण प्राप्त कर कोई भी एक विषय का लाभ उठा सकते हैं।
इतना ही नहीं यदि कोई चाहें तो हमारे माध्यम से चाहे जो सज्जन अपनी-अपनी सुविधानुसार हमारी सेवाओं का लाभ उठा कर शानदार रोजगार भी अपना सकते हैं।
मनुष्य के जीवन में विद्या का बहुत महत्त्व है इस सन्दर्भ में निम्नांकित पंक्तियों का अवलोकन अवश्य करें।
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्, विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः। विद्या बन्धुजना विदेशगमने विद्या परं देवता विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्याविहीनः पशुः॥
भावार्थ :- विद्या मनुष्य का विशिष्ट रुप है, गुप्त धन है। वह भोग देनेवाली, यशदात्री, और सुखकारक है। विद्या गुरुओं का गुरु है, विदेश में वह इन्सान की बंधु है। विद्या बडी देवता है; राजाओं में विद्या की पूजा होती है, धन की नहीं। इसलिए विद्याविहीन पशु के बराबर हि है।
भावार्थ- विद्या से विनय (नम्रता) आती है, विनय से पात्रता (सजनता) आती है पात्रता से धन की प्राप्ति होती है, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है ।
भावार्थ :- विद्या जैसा बंधु नहीं, विद्या जैसा मित्र नहीं, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहीं।
अर्थातुराणां न सुखं न निद्रा कामातुराणां न भयं न लज्जा। विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा क्षुधातुराणां न रुचि न बेला॥
भावार्थ :- अर्थातुर को सुख और निद्रा नहीं होते, कामातुर को भय और लज्जा नहीं होते। विद्यातुर को सुख व निद्रा, और भूख से पीडित को रुचि या समय का भान नहीं रहता।
भावार्थ :- विद्या माता की तरह रक्षण करती है, पिता की तरह हित करती है, पत्नी की तरह थकान दूर करके मन को रीझाती है, शोभा प्राप्त कराती है, और चारों दिशाओं में कीर्ति फैलाती है। सचमुच, कल्पवृक्ष की तरह यह विद्या क्या क्या सिद्ध नहीं करती ? यदि आप अभी प्रवेश लेना चेहरे हैं तो इस बटन पर Registetionकरें