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वैष्णव मैरिज ब्यूरो-चतुः संप्रदाय

सर्व देव पूजा विधी- 

समझने योग्य बातें

देवताओं का आवाहन संपूर्ण शरणागतभाव से करना। आवाहन के समय हाथ में चंदन, अक्षत, तुलसीदल अथवा पुष्प लें। देवता के अनुसार उनका नाम लें, जैसे;-  श्री गणपतिजी के लिए ‘श्री गणपतये नमः। श्री भवानीदेवी के लिए ‘श्री भवानीदेव्यै नमः  तथा विष्णु पंचायतन के लिए (पंचायतन अर्थात् विष्णु पंचायतन के पांच देवता हैं– श्री विष्णु, शिवजी, श्री गणेशजी, देवी तथा सूर्य) ‘श्री महाविष्णु प्रमुख पंचायतन देवताभ्यो नमः कहें।

देवताओं की जितनी भी प्रतिमाएं हों उन सभी को स्नान कराएं, शुद्ध वस्त्र पहनाएं चित्र या बड़ी प्रतिमा हो तो मात्र जल छिड़क कर पोछ दें। बड़ी प्रतिमाओं को पर्व अवसरों पर ठीक से साफ किया करें।

पंचामृत स्नान

देवताओं को पहले पंचामृत से स्नान करवाएं। इसके अंतर्गत दूध, दही, घी, मधु तथा शक्कर से क्रमानुसार स्नान करवाएं। एक पदार्थ से स्नान करवाने के उपरांत तथा दूसरे पदार्थ से स्नान करवाने से पूर्व जल चढाएं। उदा. दूध से स्नान करवाने के उपरांत तथा दही से स्नान करवाने से पूर्व जल चढाएं।

धातु की मूर्ति, यंत्र, शालग्राम इत्यादि हों, तो उन पर जल चढाएं। मिट्टी की मूर्ति हो, तो पुष्प अथवा तुलसीदल से केवल जल छिडके। चित्र हो, तो पहले उसे सूखे वस्त्र से पोंछ लें। देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछने के लिए प्रयुक्त वस्त्र स्वच्छ हो। वस्त्र नया हो, तो एक-दो बार पानी में भिगोकर तथा सुखाकर प्रयोग करें। अपने कंधे के पर से अथवा धारण किए वस्त्र से देवताओं को न पोंछें।

रुद्राभिषेक- देवताओं को सुगंधित द्रव्य-मिश्रित जल से स्नान करवाने के उपरांत गुनगुना जल डालकर महाभिषेक स्नान करवाएं। महाभिषेक करते समय (शुक्ल यजुर्वेदि रुद्राष्ठाध्यायी नामक पुस्तक के माध्यम से भगवान का रुद्राभिषेक करें) देवताओं पर धीमी गति की निरंतर धारा पडती रहे, इसके लिए अभिषेकपात्र का प्रयोग करें। संभव हो तो महाभिषेक के समय विविध सूक्तों का उच्चारण करें। महाभिषेक के उपरांत देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछकर रखें।

सभी देवताओं को चंदन-कुंकुम- लगाएंश्रीगणेशजी, हनुमानजी और देवियों को सिंदूर लगाएं, गणेशजी को तुलसी, दुर्गाजी को दूभी, सूर्यदेव को बेलपत्र न चढाएं, भगवान विष्णु को अक्षत नहीं चढाएं, उन्हें तिल-जौ और तुलसी अर्पित करें। 

शिवजी को बिल्वपत्र तथा श्री गणेशजी को दूर्वा और लाल पुष्पचढाएं। पुष्प देवता के सिर पर न चढाएं; चरणों में अर्पित करें। डंठल देवता की ओर एवं पंखुडियां (पुष्पदल) अपनी ओर कर पुष्प अर्पित करें। देवता को अनामिका से (कनिष्ठिका के समीप की उंगलीसे) चंदन लगाएं। देवता को (कागज) प्लास्टिक इत्यादि के कृत्रिम पुष्प न चढाएं, अपितु नवीन (ताजे) और सात्विक पुष्प चढाएं। देवता को चढाए जानेवाले पत्र-पुष्प न सूंघें। देवता को पुष्प चढाने से पूर्व पत्र चढाएं। 

नैवेद्य विधी- (किसी पात्र में) अर्पण करें, पर्दा लगाएं, ऋतु फल का पहले शुद्ध जल से प्रोक्षण कर अर्पित करें। धेनु-मुद्रा दिखाकर देवता के सम्मुख स्थापित करें। इस उपरान्त क्रमशः प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, कर 5 बार जल का आचमन कराएं। आरती धीमी गति से उतारें। दीप-आरती उतारते समय बाएं हाथ से घंटी बजाएं।       

दीप योग्य सूत्र- एक दीप से दूसरा दीप न जलाएं। तेल के दीप से घी का दीप न जलाएं।पूजा घरमे प्रतिदिन तेल के दीप की नई बाती जलाएं।

सर्व सुलभ सामग्री- आह्वान, आमंत्रण के लिए अक्षत, स्नान के लिए जलस्वागत के लिए चंदन, सुगंध के लिए अगरबत्ती, आहार के लिए नैवेद्य कोई फल मेवा या मिठाई, अभिवन्दन के लिए आरती कपूर अथवा दीपक। 

पूजन सामग्री यूँ रखें- बायीं ओर सुवासित जलसे भरा कुम्भ (जलपात्र) घंटा, धूपदानी, घृत का दीपक बायीं ओर रखें। दायीं ओर– तेल का दीपक, सुवासित जल भरा शंख सामनेकुमकुम, (केसर) और कपूर के साथ घिसा गाढ़ा चन्दन रखें, पुष्प आदि हाथ में रखें तथा चन्दन ताम्रपात्र में न रखें। देव पूजन में सबसे प्रथम धरती-माता- विश्व-वसुन्धरा का पूजन है।

भू देवी प्रार्थना समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते। विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

स्वस्तिवाचन- स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाहा स्वस्ति नह पूषा विश्व-वेदाहा। स्वस्ति नहताक्ष्‌र्यो अरिष्टनेमिति स्वस्ति नो बृहस्पतिहि-दधातु॥ ॐविष्णु रराटमसि विष्णु सन्नपतैस्त्रो विष्णु स्यूरसि विष्णु ध्रुवौवसि वैष्णवमसि विष्णवै त्वाम्, ॐअग्र्निदेवता, वातोदेवता, सूर्योदेवता, चंद्रमादेवता, वसवोदेवता, दित्यादेवता, मरुतोदेवता विष्वेदेवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवताः।।

ॐ ध्यौः शान्ति: अन्तरिक्ष(गुं) शान्ति: प्रथवी शान्ति: आपह शान्ति: ओषधयह्‌ शान्ति: वनस्‌-पतयह-शान्ति: विश्वे देवाहा शान्ति: बृह्म शान्ति: सर्व (गुं) शान्ति: एव शान्ति: सा मा शान्ति: ऐधि॥ सुशान्ति: भवतु।

श्री मन्‌ महागणाधिपतये नम:। श्री लक्ष्मी-नारायणाभ्याम्‌ नम:। उमामहेश्वराभ्याम्‌ नम:। शचिपुरन्दराभ्याम् नमः। वाणी हिरण्यगर्भाभ्याम नमः। माता पिता चरणकमलेभ्यो नमः। सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो भ्राह्मणेभ्यो नमः। एतद्कर्मप्रधान देवताभ्यो नमः। कुलदेवताभ्यो नमः। ग्राम देवताभ्योे नमः। स्थान देवता देवताभ्योे नमः। अविघ्नमस्तुः।  

सुमुखश्च-एकदंतश्च कपिलो गज कर्णक:। लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:॥धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:। द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छर्णुयादपि॥
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामें संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जयते॥
वक्रतुण्ड महाकाय कोटि-सूर्य-समप्रभ। निरविघ्नम्‌ कुरु मे देव सर्व-कार्येषु सर्वदा॥

गुरुमंत्र आचम्य प्राणायाम गुरुं गुरुमंत्र च स्मृत्वाः। ॐगुर्रुर ब्ह्रमा गुर्रुर विष्णु गुर्रुर देवो महेश्वरा,  गुर्रुर साक्षात परर्भृम तस्मै श्री गुरुवै नमः।। 

शिखा बंधन- मन ही मन, गायत्री मंत्र पढ़कर शिखा बंधन करें अथवा शिखा स्थान को स्पर्श करें। शरीर मन और प्राण की शुद्धि के लिये ये पाँच प्रयोग हैं। इन्हें करने के बाद ही देव पूजन का कार्य आरंभ करें।       

देहशुद्धि मंत्र पहले शरीर पर  जल छिड़करॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरःशुचिः।

आसन शुद्धि मंत्र ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता:। त्वं च धारय: मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌॥ ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।।

आचमन कर लें(तीन बार) ॐ केशवाय नमः। ॐ माधवाय नमः। ॐ नारायणाय नमः। हाथ धो लें और पोछ लें। 

ध्यान धरे ॐ श्री गोविंदाय् नमः विष्णवे नमः मधुसुदनाय नमः त्रिविकृमाय नमः वामनाय नमः श्री धराय नमः ऋषी केशाय नमः पद्मनाभाय नमः दामोदराय नमः संन्कर्षणाय नमः वासुदेवाय नमः प्रद्युम्नाय नमः अनिरुद्धाय नमः पुरुषोत्तमाय नमः अधोक्षजाय नमः नारसिंहाय नमः अच्युत्ताय नमः जनार्दनाय नमः उपेंद्राय नमः हरये नमः श्री कृष्णाय नमः।।

संकल्प (संक्षेप में दाहिने हाथ में जल अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले 🙂 तिर्थिविष्णु स्थाता वारौ नक्षत्रं विष्णुर्रेव च। योगश्च कर्णंचैव सर्वं विष्णु मयं जगत्।।

अथवा ऊँ र्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे- अमुक नगरे (अपने ग्राम) वा बौद्धावतारे विजय नाम संवत्सरे श्री सूर्ये दक्षिणायने वर्षा ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ भाद्रप्रद मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थ्याम्‌ तिथौ भृगुवासरे हस्त नक्षत्रे शुभ योगे गर करणे तुला राशि स्थिते चन्द्रे सिंह राशि स्थिते सूर्य वृष राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ चतुर्थ्याम्‌ अमुक शुभ पुण्य तिथौ, अमुक (अपने) गौत्रः जैसे;- वैष्णव, बैरागी, शर्मा, वर्मा, गुप्ता, दासो ऽहं मम आत्मनः श्रीमन्‌ अमुक देवता प्रीत्यर्थम्‌ यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।

श्री गणेश प्रार्थना- विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय, लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय, गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नम: नमस्ते रुद्राय्रुपाय करिरुपाय ते नम:।।तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम ।।तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोSस्तु सदा मम।।

कलश पूजन– गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिंन्धु काॅवेरी जलेस्मिन् संन्निधिं कुरु।। ऊँ वरुणाय नमः। सकल पूजार्थे गन्धाक्षतं पुष्पं समर्पयामि।

शंख पूजन– पान्च्चजन्य महाभाग भगद्स्थत शौभिते। विष्णु सेवार्थमागच्छ शंख देव नमौस्तुतेः।।

गरुड़ घंटापूजन आगमार्थ तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम्। कुर्वे घण्टारवं तत्र घन्टिकाव्हन लक्षणम्।। कंकू अक्षत अर्पण कर लच्छा डोरा बांधे।

धूप बत्ति- वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गंध उत्तमः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

श्री विष्णुस्तुति- शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं  विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

श्री शिवस्तुति- कर्पूर गौरम करुणावतारंसंसार सारं भुजगेन्द्र हारं। सदा वसंतं हृदयार विन्देभवं भवानी सहितं नमामि॥ नमः शम्भवाय् चमयोभवाय् चनमः शंकराय् चमयस्कराय् चनमः शिवाय् चशिवतराय् चनमः।

श्री कृष्णस्तुति- कस्तुरी तिलकम ललाटपटले वक्षस्थले कौस्तुभमनासाग्रे वरमौक्तिकम करतले वेणु करे कंकणम॥ सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम कंठे च मुक्तावलि। गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते गोपाल चूडामणी॥ मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

सरस्वती वंदना- निहार हार घनसार सुधाकराम्भा कल्याणदा, कनक चंम्पक दाम भुषांम्‌ उत्तुन्गपिनकुचकुम्भ मनोहरांन्गी वाणी नमामि मनसा वचसा विभुत्यै।।

आदिशक्ति वंदना- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥ 

श्री सूर्यवंदना- रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्। पूजयस्वविवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरं।।

श्री रामवंदना- लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।कारुण्यरूपंकरुणाकरंतं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

श्री हनुमानवंदना- अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌। दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌ सकल गुणनिधानं वानराणामधीशम्‌। रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥ 

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥                                                      

पूजन प्रारंभ– आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरोभवः। यावत्पूजां करिष्यामि तावत्वम् सन्निधो भवः।। आवाहयामि स्थापयामि अमुक भगवते नमः

आसन- रम्यम सुशोभनं दिव्यं सर्वसौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्त ग्रहाण परमेश्वर।। आसनम समर्पयामि अमुक भगवते नमः

पाध्यं- उष्णोदकं निर्मलं च सर्वसौगंध्यसंयुतम्। पादपक्षानार्थाय दत्तं ते प्रतिग्रह्यताम्।। पाध्यं समर्पयामि अमुक भगवते नमः

अर्घ्यं- अर्घ्यं ग्रहाणदेवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह। करुणाकरं मे देव गृहाणार्घ नमोस्तुते।। हस्तयोरध्र्यं समर्पयामि अमुक भगवते नमः

आचमन- सर्वतिर्थसमायुक्तं सुगन्धिनिर्मलं जलम्। आचम्यतां मयादत्तं ग्रहित्वा परमेश्वर।। मुखे आचमनियं समर्पयामि अमुक भगवते नमः

जलस्नान- गंगा सरस्वति रेवा पयोष्णी नर्मदाजलैः। स्नानापितौसि मया देव तथा शान्तिं कुरुश्व मे।। स्नानार्थ जल समर्पयामि अमुक भगवते नमः

पंन्चामृतस्नान- पयो दधि घृतं चैव मधु च शर्करायुतम्। पंन्चामृतं मया नीतं स्नानार्थं प्रतिग्रह्रयताम्।। पंन्चामृतेन पश्चातछुद्धौदकेन च स्नापयामि। समर्पयामि अमुक भगवते नमः

चन्दन- मलयाचल सम्भूतं चन्दनागुरुसम्भवम्। चन्दनं देवदेवेश स्नानार्थ प्रतिग्रह्यताम्।। गन्धोदकेन पश्चातछुद्धौदकेन च स्नापयामि अमुक भगवते नमः

वस्त्रं- सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मयोपपादिते तुभ्यं ग्रह्तां वाससी शुभे।। वस्त्रं समर्पयामि अमुक भगवते नमः

यज्ञोपवित- नवभितन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्। उपवितं चैत्तरियं ग्रहाण परमेश्वरः।। यज्ञोपवितं समर्पयामि अमुक भगवते नमः

सौभाग्यद्रव्य- ज्योत्सनापते नमस्तुभ्यं नमस्ते विश्वरुपिणे। नानापरिमलद्रव्यं ग्रहाण परमेश्वर।। सौभाग्यद्रव्याणी समर्पयामि अमुक भगवते नमः

पुष्प माला- माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयानीतानि पुष्पाणि ग्रहाण परमेश्वर।। पुष्पमालां समर्पयामि अमुक भगवते नमः

तुलसीदल- तुलसीं हेमरुपां च रत्नरुपां च मन्जरीम्। भवमौक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि हरिपियम्।। तुलसीदल समर्पयामि अमुक भगवते नमः

धूप अगरबत्ती- वनस्पतिरसोद्भुतो गन्धाढ्यो गन्धउत्तम्। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपौयं प्रतिग्रह्यताम्।। धूपं समर्पयामि अमुक भगवते नमः

दीप– ज्यं च वर्तिसंयुक्तं वन्हि ना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेश त्रेलोक्यतिमिरापहम्‌॥ दीपं  समर्पयामि अमुक भगवते नमः

नैवेद्य- शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च। आहारम्‌ भक्ष्य-भोज्यम्‌ च नैवेद्यम्‌ प्रति-गृह्यताम्‌॥ नैवेद्यम्‌ समर्पयामि अमुक भगवते नमः

आचमन- एलोशीरलवन्गादि कर्पूरपरिवासितम्। प्राशनार्थं कृतं तोयं ग्रहाण परमेश्वर।। आचमनियं समर्पयामि अमुक भगवते नमः

ताम्बुलपान- पुंगीफलं महादिव्यं नानावल्लीदलैर्युतम्। एलाचुर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिह्रह्यताम्।। लोंग ईलायची ताम्बुल पान सुपारी इत्यादि समर्पयामि अमुक भगवते नमः

दक्षिणा- हिरन्यगर्भ गर्भस्थं हेमविजं विभावसौ अनन्त फलदमतं तथा शान्तिं प्रयच्छमें।। ऋतुफल (नारियल)-दक्षिणा समर्पयामि अमुक भगवते नमः

कर्पूरआरती-  ॐकर्पूरगौरं करूणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारम्।। सदा बसन्तं ह्दयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि।।
चन्द्रमा मनसो जातः, चक्षोः सूर्यौ अजायत। श्रोत्राद् वायुश्च प्राणश्च:, मुखादग्निरजायत:।।
कदली गर्भ सम्भूतं कर्पुरेन प्रदीपितंम्।।आर्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ।।

क्षमाप्रार्थना- त्वमेव माता  पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्चसखात्वमेव।त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेवत्वमेव सर्वं मम देव देव।।मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दनयत्पूजितं मयादेवं परिपूर्णं तदस्तु मे।आवाहनं  जानामि  जानामि विसर्जनम् पूजां चैव  जानामि क्षमस्व परमेश्वर

पुष्पाञ्जलि-  ॐ नाना सुगन्धपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च। पुष्पान्जलिर्मयादत्तो ग्रहाण परमेश्वर।। मंत्रपुष्पान्जलियुक्त्तं नमस्कारं समर्पयामि।

प्रदक्षिणा-  यानि कानि च पापानि ज्ञात-अज्ञात-कृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्ति प्रदक्षिण-पदे पदे॥ आवाहनम्‌ न जानामि न जानामि तवार्चनाम्‌। पूजां चेव न जानामि क्षम्यताम् परमेश्वर।

शांतिपाठ- ॐध्यौः शान्ति: अन्तरिक्ष(गुं) शान्ति: प्रथवी शान्ति: आपह शान्ति: ओषधयह्‌ शान्ति: वनस्‌पतयह-शान्ति: विश्वे देवाहा शान्ति: बृह्म शान्ति: सर्व(गुं) शान्ति: एव शान्ति: सा मा शान्ति: ऐधि॥ सुशान्ति: भवतु। ॐपूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।

साष्टांग प्रणाम करें- ॐ पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसम्भवः। त्राहि माम् पुण्डरीकाक्ष सर्वपाप हरो भव॥ 

पूजाकर्म समर्पण- ॐकायेन वाचा मनसेन्द्रिग्रेवा बुध्यात्मनावा प्रकर्ति स्वभावात करोमि यद्यद् सकलं परस्मै ॐ अमुक देवार्पणमस्तु। 

उच्च स्वर में जयघोष- ॐ आनन्द कन्द भगवान की जय, धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्यान हो, इत्यादि जय घोष करने के उपरान्त यथा शक्ति तुलसी, चरनामृत, पंचामृत अथवा महाभोग का प्रसाद वितरण ग्रहण करें।                                               

(इति पूजन विधि संपूर्णम्‌)

श्रीरामाष्टक-  हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा। हे गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥ हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते। हे बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

श्रीराम स्तुति- आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्। वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥ बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्। पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद् श्री रामायणम्॥

ॐ श्री मन्‌भगवतेर्पणमस्तु:

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