प्राचीनकाल में भी ‘वैरागमय ग्रहस्थ जीवन’ व्यतित करने के शास्त्रों में कई प्रमाण मिलते हैं। जो अब भी वही प्रक्रिया अध्यात्म मार्ग पर द्रुत गति से आगे बढ़ने वाले साधनों के लिए उपयुक्त रुप में प्रचलित है। प्राचीनकाल के ऋषि–मुनि आज के साधुओं से सर्वथा भिन्न थे। उनमेंसे अधिकांश ‘वैरागमय ग्रहस्थ जीवन’ व्यतित करते थे। प्रकृति… Continue reading शास्त्रोक्त संदर्भ ‘वैरागमय ग्रहस्थ जीवन,