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वैष्णव मैरिज ब्यूरो-चतुः संप्रदाय

श्री वैष्णव सम्प्रदाय, द्वारा एवं गोत्र

श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में, भगवान श्रीविष्णु को ईश्वर और पूरी श्रृष्टि का संचालन कर्ता माना जाता हैं. श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के उप-सम्प्रदाय भी हैं.

यद्यपी श्रीवैष्णव सम्प्रदाय को स्वामी श्रीरामानन्दाचार्यजी ने नई पहचान प्रदान की है। उसीके तहत चतुः सम्प्रदाय 52द्धारा गोत्र प्रचलन में आए। अत एव श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में स्वामी श्रीरामानंदाचार्यजी द्वारा स्थापित धार्मिक परम्पराओं का पालन किया जाता है। इससे पूर्व शेव एवं वैष्णव मतावलंबियों के बीच अपनी अपनी धार्मिक परम्पराओं को लेकर कई बार हिंसक विवाद भी हुए हैं। इस कड़े संघर्ष का व्यापक इतिहास रहा है।

बताया जाता है स्वामी श्रीरामानंदाचार्यजी बहुत बड़े क्रान्तीकारी विचारों के सन्त थे। जिन्होंने वर्ण व्यवस्था से परे भेदभाव रहित सर्वजनहितकारी श्रीवैष्णव सम्प्रदाय अन्तर्गत सर्वजनसुलभ उपासना पद्धति एवं नई परम्पराओं को अंगीकार किया। युगल ईष्टदेव आराधना, गुरुपरम्परा, राममंत्र, श्रीविष्णु तिलक, सिरपर चुटिया, तुलसीमाला, कंठीधारण, पित्र पादुका स्थापन सहित वैष्णवीय तीथियों, वृतोपवास उत्सव करने जैसे कई बड़े बदलाव हुए।

श्रीवैष्णव सम्प्रदायद्वारा एवं गोत्र,  

क्र.सं. द्वारा गौत्र

(1) रामानन्द (रामावत सम्प्रदाय )  

[1] अग्रावत [2] [अनन्तानन्दी [3] अनुभवानन्दी, (लश्करी)

लश्करी गौत्र सक्षिप्त टिप्पणी,

लश्करी गौत्र चार है परंतु मुख्य रूप से “अनुभावानंदी” है बाकी के तिन निम्नलिखित है (1) भावानंदी (2) सुखानंदी (3) सुरसरानंदी

लश्करी गौत्र का उदय

(लश्करी का अर्थ है सैनिक ! लश्करी वे साधु, सन्यासी थे जो अनुभवानन्दाचार्य जी द्वारा गठित लश्कर (सेना) में सम्मीलित थे, वैष्णव सम्प्रदाय के प्रबल प्रवर्तक ज.गु. स्वामी श्री रामानन्दाचार्य जी के प्रशिष्य श्री अनुभवानन्दाचार्य ने लश्कर (सेना) की स्थापना की, ताकी शैव, दशनामीयों व शाक्त मतावलम्बियों से वैष्णव धर्म की रक्षा की जा सके)

[4]  अलखानन्दी  [5]  कर्मचन्दी [6]  कालू जी [7]  कीलावत [8]  कुबावत [9]  खोजी जी –

      खोजी के दोहे-:

“खोजी”खोजत् ग्रन्थ बहु-मिल्यो सन्त मत सार। ले दिक्षा श्री वैष्णवी, ऊचँ-निच भव पार।।

[10]   जंगीजी [11]    लाहारामी [12]   टीलावत [13]   तनतुलसी [14]   दिवाकर [15]   देवमुरारी [16]   धूंध्यानन्दी [17]   नरहर्यानन्दी [18]   नाभाजी [19]   पीपावत [20]   पूर्ण बैराठी [21]   भगवन्ननारायणी [22]   भड़गी (भृंगी) [23]   भावानन्दी [24]   मलूकिया [25]   योगानन्दी[26]   रामकबीर [27]   राधवचेतनी [28]   रामथंमणा [29]   रामरामायणी [30]   रामरावली [31]   रामरंगी [32]   लालतुरंगी [33]   सुखानन्दी [34]   सुरसुरानन्दी [35]   हठीनारायणी [36]   हनुमानी

(2) निम्बार्क सम्प्रदाय क्र.सं. द्वारा गौत्र,

[1]   केशवव्याणी [2]   घमंडी [3]   चित्रानागा [4]   चर्तुभुजी [5]   तत्ववेदी [6]   परशुरामी [7]   मधवकाणी [8]   राधावल्लभी [9]   लपरागोपाली [10]   वीरमत्यागी [11]   शोभावत [12]   ऋषिकेेषवी

(3) वल्लभाचार्य (विष्णु स्वामी) क्र.सं. द्वारा गौत्र

[1]   गोकुलानन्दी [2]   विट्ठलानन्दी

(4) श्री मध्वचारी (गौडि़य) क्र.सं. द्वारा गौत्र

[1]   नित्यानन्दी [2]   श्यामानन्दी

श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के बारे में दिलचस्प तथ्य 

श्रीविष्णु के 10 अवतारों का उल्लेख मत्स्यपुराण में मिलता है जो कि इस प्रकार हैं – मत्स्य, कच्‍छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्‍ण, बुद्ध और कल्कि. वैष्णव धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सार्वधिक महत्व भक्ति को दिया गया हैं. भागवत धर्म वैष्णवों का उपासना मार्ग हैं. श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के तीर्थ स्थल इस प्रकार हैं– बद्रीधाम, मथुरा, वृन्दावन, अयोध्या, तिरूपति बालाजी, श्रीनाथजी, द्वारकाधीश आदि. ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है.

वैष्‍णव संस्‍कार 

वैष्णव मंदिरों में भगवान विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं, इस धर्म के लोग एकेश्‍वरवाद के प्रति कट्टर नहीं हैं. इस धर्म या सम्प्रदाय के साधू-संन्यासी सिर मुंडाकर चुटिया रखते हैं. ये सभी पूजा, यज्ञ और अनुष्ठान दिन में करते हैं. यह सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं. सन्यासी जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं, जबकि सामान्य लोग भी जनेऊ धारण कर सकते हैं. वैष्णव धर्म के लोग सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं. वैष्णव दाह संस्कार (मृत शरीर को जलाने) की रीति हैं. श्रीवैष्णव सम्प्रदाय वैष्‍णव चंदन का तिलक लगाते हैं. वैष्‍णव साधुओं को वैरागी, बैरागी, साधु-संत, स्‍वामी, आचार्य, महात्मा आदि कहा जाता है 

(उपयोगी सुझाव सादर अमंत्रित है) 

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